कहानी इक ऐसी हू मै..जिसे तुम कभी ना लिख पाओ गे--दासताॅ हू ऐसी..जिसे तुम
कहा समझ पाओ गे--उलझनो को उलझाती शमाॅ हू ऐसी..उस के परवाने तुम नही बन
पाओ गे--जो साॅसो को मिटा जाए दीवानगी के लिए..उस मिसाल को तुम कहा झेेल
पाओ गे--मुहबबते पाक जो करो गेे कभी..तब ही मेरी जिॅदगी के किरदार बन पाओ गे--
कहा समझ पाओ गे--उलझनो को उलझाती शमाॅ हू ऐसी..उस के परवाने तुम नही बन
पाओ गे--जो साॅसो को मिटा जाए दीवानगी के लिए..उस मिसाल को तुम कहा झेेल
पाओ गे--मुहबबते पाक जो करो गेे कभी..तब ही मेरी जिॅदगी के किरदार बन पाओ गे--