Friday 12 February 2016

मुुहबबत नाम नही ऐययाशी का..मुहबबत तो किताब है..इबादत केेे पननो का...जिसम

का मिलन गर पयार होता तो ना तेरा वजूद होता..ना मेरा वजूद होता.....पूजा के धागो

मे सिमटता..रूह की ताकत मे बदलता बस खुदा का बेपनाह इकरार होता..जिसम तो

जिसम है..मिट ही जातेे है....रूह को जो जीते..बस वही पयार होता..वही पयार होता....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...