गुजर रहे है जिस तनहाई से हम..तेरे उस साथ की याद आती है--वो लमहे.वो तेरी
गुफतगू...बाहो मे तेरी सो जाना--वो सकून की राते..वो तेरा हौले से बुलाना..मदहोशी के
आलम मे मेरी पायल को बजा देना--चूडियो को खनका कर..मुझे रातो को जगा देना--
पायल तो आज भी है..चूडिया भी है..पर उन को सजाने के लिए तूूू पास नही है--
गुफतगू...बाहो मे तेरी सो जाना--वो सकून की राते..वो तेरा हौले से बुलाना..मदहोशी के
आलम मे मेरी पायल को बजा देना--चूडियो को खनका कर..मुझे रातो को जगा देना--
पायल तो आज भी है..चूडिया भी है..पर उन को सजाने के लिए तूूू पास नही है--