दरद की इनितहाॅ जब होती है..तो रो लेते है--वजह कुछ भी नही..फिर भी खुुद को ही
सजा देेते है---आॅसू से भरी यह आॅखे देखे ना कोई..बेवजह कुछ जयादा ही मुसकुरातेे है-
--जिन से यह दरद मिले..उन के नाम बताते हुए भी कतराते है--उममीद केे दामन को
अब दफन कर के..अपनी ही दुनिया मे इक उममीद की लौ खुद ही जला लेते है---
सजा देेते है---आॅसू से भरी यह आॅखे देखे ना कोई..बेवजह कुछ जयादा ही मुसकुरातेे है-
--जिन से यह दरद मिले..उन के नाम बताते हुए भी कतराते है--उममीद केे दामन को
अब दफन कर के..अपनी ही दुनिया मे इक उममीद की लौ खुद ही जला लेते है---