Monday 8 February 2016

ऐ हवा जऱा धीरे चल..मेरी जुलफो को ना उडा..महबूब मेरा छू चुका है इनहे अब..मेरी

आॅखो को ऐ सूरज इतना ना जला..कि डूब चुका है वो इन की मदहोशी मे..मेरे जिसम मेे

ना दरद जगा..कि जागीर का मालिक मेरा साजन है अब...जा चाॅद अब तू छुप जा घने

बादल मे..कि मधुर मिलन की बेला मे तू कही नही अब मेरे साथ...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...