इशक की दासताॅ गर इतनी ही अजीज होती,तो पयार यकीकन पयार होता--इस की
गहराई को जो समझा होता,तो पयार बदनाम नही होता---पयार तो हर कोई करता है,
पर दूर तक साथ कोई नही देता--करते है जो पयार,अकसर वो ही जखम गहरे दे जाते है
--वादे कर के वकत पे मुकर जाते है---पयार इबादत हैै गर,तो रुह को मुुकममल करता
है--वरना् हर जखम नासूर बन कर ही उभरता है---
गहराई को जो समझा होता,तो पयार बदनाम नही होता---पयार तो हर कोई करता है,
पर दूर तक साथ कोई नही देता--करते है जो पयार,अकसर वो ही जखम गहरे दे जाते है
--वादे कर के वकत पे मुकर जाते है---पयार इबादत हैै गर,तो रुह को मुुकममल करता
है--वरना् हर जखम नासूर बन कर ही उभरता है---