Saturday 30 January 2016

इशक की दासताॅ गर इतनी ही अजीज होती,तो पयार यकीकन पयार होता--इस की

गहराई को जो समझा होता,तो पयार बदनाम नही होता---पयार तो हर कोई करता है,

पर दूर तक साथ कोई नही देता--करते है जो पयार,अकसर वो ही जखम गहरे दे जाते है

--वादे कर के वकत पे मुकर जाते है---पयार इबादत हैै गर,तो रुह को मुुकममल करता

है--वरना् हर जखम नासूर बन कर ही उभरता है---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...