तारीफ मेरी इतनी ना करो तुम,कही आसमाॅ मे ना उडनेे लगे हम--जिनदगी मे अपनी
इतना ना करो शामिल-ऐसा ना हो खुद की जिनदगी मे ही ना रह पाए हम--अपने हुसन
पे ना इतराए गे कभी,कि तेरी ही नजऱो मे कही दोषी ही ना बन जाए हम--कायल है तेरी
रूमानी बातो के,कि तेरे कदमो मे मुहबबत अपनी कुरबान करते जा रहे है हम---
इतना ना करो शामिल-ऐसा ना हो खुद की जिनदगी मे ही ना रह पाए हम--अपने हुसन
पे ना इतराए गे कभी,कि तेरी ही नजऱो मे कही दोषी ही ना बन जाए हम--कायल है तेरी
रूमानी बातो के,कि तेरे कदमो मे मुहबबत अपनी कुरबान करते जा रहे है हम---