यह मुहबबत है या फिर छलकता हुआ पैमाना है---कुछ खवाब है अधूरे से या फिर
महकता हुआ नजऱाना है--दिल का यह दरद,जो उठता है यू हौले हौले--कोई साजिश है
या फिर जिनदगी का कोई अफसाना है---कही बस ना जाए तेरी मुहबबत के आशियाने
मे--कि आ रही है सदा तेरे दिली शहखाने से-----
महकता हुआ नजऱाना है--दिल का यह दरद,जो उठता है यू हौले हौले--कोई साजिश है
या फिर जिनदगी का कोई अफसाना है---कही बस ना जाए तेरी मुहबबत के आशियाने
मे--कि आ रही है सदा तेरे दिली शहखाने से-----