Thursday 29 October 2015

घुघरू की आवाज पे,ढोलक की थाप पे-जो थिरके कदम--फिर रूक ही नही पाए-------

दरिनदे साज ने जो लूटा,इनसाॅ फिर कभी बन नही पाए---रूह को मुकममल करने की

कोशिश मे,गहरे सैलाब मे डूबते उतरते चले गए---दरबारे-पाक मे जो सर झुकाया--

मुुशिकलो से आजाद होते चले गए--होते चले गए----

Thursday 22 October 2015

बहुत सकून से बैठे है वो-तनहाईयो से दूर,कही बेखबर बैठे है वो---समनदर की लहरो नेे

जो छु्आ कदमो को मेरे,अठखेलियो से खेलते,खुद मे मशगूल है वो---नजमो के सॅसार

मे,वो गुनगुनाते रहे--यह जाने बिना कि कोई फिदा है उन पर----बहारे दे रही हैै आवाज

उनहे,पर सब से बहुत दूर-ना जाने कयू खोए बैठे है वो--------

Wednesday 21 October 2015

दोसतो दशहरा मुबारक हो---जिनदगी बार बार नही मिलती-इस से पयार करे---अपना

खयाल रखे-जो आप को मन से सममान दे--पयार करे...बदले मे उन को भी सममान दे

अपना अपमान ना सहे---खुश रहे और खुशिया बाटे--दुख-तकलीफ मे हिममत ना हारे

--हर हाल मे भगवान् का शुकरीया अदा करे---जय साई राम--

Tuesday 20 October 2015

यह मुहबबत है या फिर छलकता हुआ पैमाना है---कुछ खवाब है अधूरे से या फिर

महकता हुआ नजऱाना है--दिल का यह दरद,जो उठता है यू हौले हौले--कोई साजिश है

या फिर जिनदगी का कोई अफसाना है---कही बस ना जाए तेरी मुहबबत के आशियाने

मे--कि आ रही है सदा तेरे दिली शहखाने से-----

Sunday 18 October 2015

फूल बिछाए है तेरी राहो मे,हमदम मेरे अब तो आ जा--मिननतो से सजाया है अपना आशियाना

,कि अब तो आ जा---बनिदशे जमाने की लाख हो चाहे,पर मेरी खुशी के लिए सब छोड

के आ जा----यह दुनिया कब कहाॅ किस की हुई है,गर माना है मुझे अपना तो सब भुला

कर आ जा---

Thursday 15 October 2015

मनिजल तय करने वाले थे,कि तूफाॅ ने बरबाद कर दिया---समभलते तब तक,कि वकत

ने आसमाॅ से धरती पे पटक दिया--थरथराते लबो सेे जो हाथ उठाए दुआ के लिए,मासूम

 सी जिनदगी ने रासता रोक दिया---आज यह आलम है-कि ना जमीॅ पे है ना ही आसमाॅ

की बुलनदियो के साथ---नजऱ भर देखने के लिए सारे नजाऱे दूर कर दिए----

Wednesday 14 October 2015

बरस रहा है यह बदरा,मेरी आॅखो की तरह--तू पलट कर देख तो,किसी दुआ की तरह---

मनिजले-शाख कभी कभी मिलती है---यह रौशन सी शमा भी कभी कभी जलती है---

ना बदल इरादो को इस मौसम की तरह---कि इनतजाऱ मे बिछी है यह बाहे,किसी

खूबसूरत मॅजऱ की तरह------

Monday 12 October 2015

मेरी शायरी का हर रूप पसनद करने का शुकरीया---मेरी शायरी उन सब दिलो के लिए--

जो सचची मुहबबत के लिए धडकते है---दोसतो-----तहे-दिल से फिर शुकरीया---
जितना निखारा है  तेरी मुहबबत ने मुझे,कायल है तेरी इसी वफा के लिए--जो बात कही

तूने,धीमे से कानो मे मेरे--वो खनक के उतर गई सीधे दिल मे मेरे-----ना जाना जमाने

की रॅजिशो पे कभी,दरदे-दिल दे जाती है नासूर बन के----यू ही रहना मेरा बहाऱे-जशन

बन के,कि आदी हू तेरी इसी अदा के लिए-----

Thursday 8 October 2015

कभी उतरा जो तेरी चाहत का नशा,तो इस दुनिया को देख पाए गे---हर सुबह तेरी ही

इबादत है,हर रात है तेरे सजदे मे----घूम रहे है तेरे ही आस-पास उममीदे-वफा को लिए

----जननत से आ रही है दुआए,तेरी ही जिनदगी के लिए---सज-सॅवर कर बैठे है,फिर से

तेरी ही पनाह मे मुहबबत तेरी पाने के लिए------

Wednesday 7 October 2015

बुझ गए सारे दिए,पर इक सुलगती सी लौ बाकी है---बरबाद हो चुकी वो तमाम खुशिया,

पर इक हलकी सी मुसकान अभी बाकी है----बिखर गए है सभी रिशते,पर उन की महक

कही बाकी है--जिनदगी तो बस अब तमाम होने को है,पर इन साॅसो का चलना आज भी

कही जारी है-----

Monday 5 October 2015

कही से ढूॅढ के लाओ नसीब मेरा,मुझे खुशियो की हसरत है---कभी नाचू कभी हॅस दू---

वादियो मे झूमने की भी चाहत है---करू यह पलके जब भी बनद,शहनाईया बजती है

कानो मे मेरे--सजदा करते है खुदा तेरे आगे कि इनही कदमो से,पिया से मिलने की

हसरत बाकी है---

Saturday 3 October 2015

बदनाम हो गए,बेनाम हो गए--जमीॅ पे जो थिरके कदम,हम जमाने से परेशान हो गए--

बेडियो को तोडने की कोशिश मे,सलामती के लिए मजबूर हो गए---हाथ जो उठाए दुआ

के लिए,काॅपते लबो से किसी की रात के अरमान बन गए---उलझे सवालो मे उलझ कर

,साॅसो को जिसम से निकालने की कोशिश मे-हम मशहूर हो गए----

Friday 2 October 2015

जब आप खुश रहते है,दूसरो की मदद भी करते है-तो इस का मतलब यह नही कि आप

के पास दुख नही है---इस का मतलब यह है कि आप जिनदगी को हर रूप मे जीना

सीख चुके है---खुश रहे और खुशिया बाटे-तब भगवान् आप के साथ है-नई सुबह मॅगल

मय हो----

Thursday 1 October 2015

आज ना तेरी राहो मे है,ना तेरी बाहो मे है---कुदरत के बनाए जाल मे,आज किसी और

की पनाहो मे है---किसमत के इस मजाक पे,कभी राजी है तो कभी तनहाॅ है---तुझे ढूढने

की खवाहिश मे,दर ब दर भटकते है--किसी मोड पे तू आवाज लगा दे,इस आस मे यह

साॅसे अब भी जिनदा है----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...