सैलाब की गहराईयो से,खुद को बचाते आए है हम---कही था आग का दरिया,कही थे
सरद हवाओ के झोके---कभी टूटे कभी बिखरे,मगर खुद को तनहाईयो से निकालतेे
आए है हम---जजबातो की सुलगती तडपती आग मे तप कर---निखर कर,सॅवर कर
आज इस दुनिया के सामने आए है हम-----
सरद हवाओ के झोके---कभी टूटे कभी बिखरे,मगर खुद को तनहाईयो से निकालतेे
आए है हम---जजबातो की सुलगती तडपती आग मे तप कर---निखर कर,सॅवर कर
आज इस दुनिया के सामने आए है हम-----