बह रहा जो दरद बरसो से,इन आॅखो से मेरे--कौन है वो मसीहा जो ले जाए गा मुझे उस
आसमाॅ से परे--इनितहा तो बस इनितहा होती है-कभी खुशी की तो कभी गम की दवा
होती है--परिनदो की भी इक दुनिया होती है,दरद से तडपते है जब तो रिहायश जमी पे
होती है--इनसाॅॅ जब तडप जाता है-उस की रिहायश आसमाॅ से परे होती है-----
आसमाॅ से परे--इनितहा तो बस इनितहा होती है-कभी खुशी की तो कभी गम की दवा
होती है--परिनदो की भी इक दुनिया होती है,दरद से तडपते है जब तो रिहायश जमी पे
होती है--इनसाॅॅ जब तडप जाता है-उस की रिहायश आसमाॅ से परे होती है-----