जजबात बिखर जातेे है हवाओ मे ऐसे,कि जैसे उन का कोई वजूद ना हो--मुहबबत तो
जैसे इकबाले-ए-जुरम है,खामोशी से सीने मे दबाए जीते है---भटकती राहो मे ढूढते है
अपने मसीहा को,पाॅव के छालो को चादर मे लपेटे रहते है--तडपा के रख दे जो धडकनो
को,खुद को मिटा दे मुहबबत पे-----वही जजबात कहानी बन जाते है-------
जैसे इकबाले-ए-जुरम है,खामोशी से सीने मे दबाए जीते है---भटकती राहो मे ढूढते है
अपने मसीहा को,पाॅव के छालो को चादर मे लपेटे रहते है--तडपा के रख दे जो धडकनो
को,खुद को मिटा दे मुहबबत पे-----वही जजबात कहानी बन जाते है-------