Tuesday 2 June 2015

तुम परेशान हो-हम पशेमान है---दूरियो का यह सिलसिला घटता ही नही--समनदर से

उठती इन लहरो का तूफाॅ कभी कम होता ही नही-----पाॅव के छालो के लहू से जमी पे

निशाॅ बनाते जा रहे है---जाने कब कहाॅ कोई फरिशता मिटा दे दरद के यह गहरे निशाॅ--

जी उठे गी यह हसऱते--होगी फिर यह निगाहे मेहरबान-मेहरबान-------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...