Wednesday 27 May 2015

घुॅघरूओ की आवाज मे,पायल की थिरकती झनकार मे-अपना वजूद ठूठते ही रहे--उस

रूप मे,उस श्रॅगाऱ मे-आईने मे जब भी देखा,अपनी सूरत को तलाशते ही रहे----ठोलक

की थाप से बजती उन तालियो से हम डरते रहे-डरते ही रहे--इतने खूबसूरत कयो है हम

यह बेवजह सा सवाल कुदऱत से पूछते रहे---कब आए गे तेरी पनाहो मे ऐ मेरे खुदा ----

अपनी इबादत मे इन सूनी निगाहो से तुम से पूछते ही रहे------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...