घुॅघरूओ की आवाज मे,पायल की थिरकती झनकार मे-अपना वजूद ठूठते ही रहे--उस
रूप मे,उस श्रॅगाऱ मे-आईने मे जब भी देखा,अपनी सूरत को तलाशते ही रहे----ठोलक
की थाप से बजती उन तालियो से हम डरते रहे-डरते ही रहे--इतने खूबसूरत कयो है हम
यह बेवजह सा सवाल कुदऱत से पूछते रहे---कब आए गे तेरी पनाहो मे ऐ मेरे खुदा ----
अपनी इबादत मे इन सूनी निगाहो से तुम से पूछते ही रहे------
रूप मे,उस श्रॅगाऱ मे-आईने मे जब भी देखा,अपनी सूरत को तलाशते ही रहे----ठोलक
की थाप से बजती उन तालियो से हम डरते रहे-डरते ही रहे--इतने खूबसूरत कयो है हम
यह बेवजह सा सवाल कुदऱत से पूछते रहे---कब आए गे तेरी पनाहो मे ऐ मेरे खुदा ----
अपनी इबादत मे इन सूनी निगाहो से तुम से पूछते ही रहे------