खामोशियाॅ कभी मोहताज नही होती किसी की मुहबबत की--बनद दरवाजो मे खिलती
है धूप,रौशन बन कर निगाहो की---लबो पे आने नही देती किसी अफसाने को--दफन
कर देती है खुद को,बसाए हुए आशियाने मे---तडपे तो कयू तडपे इसी जजबात को
बताने मे,,आखिर मुहबबत ही जुबाॅ बन जाती है-खामोशियो की कहानी मे---------
है धूप,रौशन बन कर निगाहो की---लबो पे आने नही देती किसी अफसाने को--दफन
कर देती है खुद को,बसाए हुए आशियाने मे---तडपे तो कयू तडपे इसी जजबात को
बताने मे,,आखिर मुहबबत ही जुबाॅ बन जाती है-खामोशियो की कहानी मे---------