Sunday 5 April 2015

मेरी ही जिनदगी पे,उस ने किताब लिख डाली---किसी पनने पे हमारी तनहाई,तो कही

हमारी खुशी बयाॅ कर डाली---पलटते रहे जो हर पनना,मुहबबत अपनी का उस ने हर

मुकाम ही तय कर डाला---मुसकुरा दिए उस की मुहबबत के अफसानो पे,जो हम खुद

को ना समझे--यकीकन उस की लिखावट मे खुद का अकस ही ढूढ डाला-------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...