मेरी ही जिनदगी पे,उस ने किताब लिख डाली---किसी पनने पे हमारी तनहाई,तो कही
हमारी खुशी बयाॅ कर डाली---पलटते रहे जो हर पनना,मुहबबत अपनी का उस ने हर
मुकाम ही तय कर डाला---मुसकुरा दिए उस की मुहबबत के अफसानो पे,जो हम खुद
को ना समझे--यकीकन उस की लिखावट मे खुद का अकस ही ढूढ डाला-------
हमारी खुशी बयाॅ कर डाली---पलटते रहे जो हर पनना,मुहबबत अपनी का उस ने हर
मुकाम ही तय कर डाला---मुसकुरा दिए उस की मुहबबत के अफसानो पे,जो हम खुद
को ना समझे--यकीकन उस की लिखावट मे खुद का अकस ही ढूढ डाला-------