खामोशियाॅ सफर करती है-बनद दरवाजो की आहट पे---गुजऱ जाते है कई लमहे इन
बेआवाज अफसानो पे--छू लेती है बहाऱे इशक का फऱऱमान बन के--कभी रो देती है
मजबूर-ए-इशक बन के---आ लौट चले कुदऱत की पनाहो मे--यहा सकून-ए-दिल कभी
हासिल ना कर पाए गे----------
बेआवाज अफसानो पे--छू लेती है बहाऱे इशक का फऱऱमान बन के--कभी रो देती है
मजबूर-ए-इशक बन के---आ लौट चले कुदऱत की पनाहो मे--यहा सकून-ए-दिल कभी
हासिल ना कर पाए गे----------