अपने दुखो के मौसम से,कुछ सुख के पल खोज रहे है हम...अपने बहते आॅसूओ मे,ओस
की भीगी शबनम ठूठ रहे है हम...जखम जो नासूऱ बन चुके है अब,उन से ही अपने दरद
की दवा ठूठ रहे है हम...कभी तडपे कभी रोए कभी यादो मे खोए हम,और आज उनही
जजबातो मे अपनी खुशिय़ाॅ खोज रहे है हम........
की भीगी शबनम ठूठ रहे है हम...जखम जो नासूऱ बन चुके है अब,उन से ही अपने दरद
की दवा ठूठ रहे है हम...कभी तडपे कभी रोए कभी यादो मे खोए हम,और आज उनही
जजबातो मे अपनी खुशिय़ाॅ खोज रहे है हम........