Wednesday 11 February 2015

अपने दुखो के मौसम से,कुछ सुख के पल खोज रहे है हम...अपने बहते आॅसूओ मे,ओस

की भीगी शबनम ठूठ रहे है हम...जखम जो नासूऱ बन चुके है अब,उन से ही अपने दरद

की दवा ठूठ रहे है हम...कभी तडपे कभी रोए कभी यादो मे खोए हम,और आज उनही

जजबातो मे अपनी खुशिय़ाॅ खोज रहे है हम........

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...