Monday 26 January 2015

लौट आओ कि इनतजाऱ की घडियाॅ कटती नही अब..पॅछी भी लौटने लगे है घर..रात

के झुरमुट से पहले....इतनी सजा कया कम है तेरे बिना जो जी लिए इतना....कहते है

इनतजाऱ जब हद से जयादा होने लगे और मुहबबत दीवानगी को छूने लगे...होता है

इबादत का असर इतना कि हमारे मिटने से पहले लौट आओ गेे..खुद पे यकी है इतना..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...