जिनदगी मुसकुरा रही थी हम पे..और हम..हम उन की अदाओ पे कुरबान हो रहे थे..
खुली अधखुली आॅखो से उन को निहार रहे थे..पयार का यह जजबा पाया था हम ने
बरसो बाद..बहुत मुशकिल से नसीब हमारे दऱवाजे पे दसतक दे रहा था..इबादत मे जब
सजदे किए हम ने,तो मुहबबत मुसकुराई और दामन मे हजारो फूल बिखर गए....
खुली अधखुली आॅखो से उन को निहार रहे थे..पयार का यह जजबा पाया था हम ने
बरसो बाद..बहुत मुशकिल से नसीब हमारे दऱवाजे पे दसतक दे रहा था..इबादत मे जब
सजदे किए हम ने,तो मुहबबत मुसकुराई और दामन मे हजारो फूल बिखर गए....