Thursday 25 December 2014

जिनदगी मुसकुरा रही थी हम पे..और हम..हम उन की अदाओ पे कुरबान हो रहे थे..

खुली अधखुली आॅखो से उन को निहार रहे थे..पयार का यह जजबा पाया था हम ने

बरसो बाद..बहुत मुशकिल से नसीब हमारे दऱवाजे पे दसतक दे रहा था..इबादत मे जब

सजदे किए हम ने,तो मुहबबत मुसकुराई और दामन मे हजारो फूल बिखर गए....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...