Saturday 29 November 2014

जिनदगी गुजरती रही और हम इनतजाऱ करते रहे..वकत चलता रहा और हम उस के

आने की घडियाॅ गिनते रहे..कया वजूद है मेरा उस के बिना,इसी कशमकश मे जवानी

अपनी बरबाद करते रहे..आज मोड पे है जीवन के उस पहलू मे,जहाॅ इनतजार आज भी

है....पर अब उस का नही..साॅसे खतम कब होगी..यह सवाल खुद से करते है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...