वकत गुजरता रहा और यह जिनदगी चलती रही...कभी खामोश रही तो कभी पयार
को तरसती रही..कभी वादे मिले तो कभी धोखे..कही मिला आसमाॅ की बुलनदियो को
छूने का खवाब..तो कही दौलत की चकाचौध मे बसाने का वो ऱाज...आज जी रहे है तो
बस अपनी ताकत मे..जहाॅ खुदा दे रहा है आवाज..हमे इन सब से दूर..सिरफ उस की ही
पनाहो मे...
को तरसती रही..कभी वादे मिले तो कभी धोखे..कही मिला आसमाॅ की बुलनदियो को
छूने का खवाब..तो कही दौलत की चकाचौध मे बसाने का वो ऱाज...आज जी रहे है तो
बस अपनी ताकत मे..जहाॅ खुदा दे रहा है आवाज..हमे इन सब से दूर..सिरफ उस की ही
पनाहो मे...