Tuesday 18 November 2014

वकत गुजरता रहा और यह जिनदगी चलती रही...कभी खामोश रही तो कभी पयार

को तरसती रही..कभी वादे मिले तो कभी धोखे..कही मिला आसमाॅ की बुलनदियो को

छूने का खवाब..तो कही दौलत की चकाचौध मे बसाने का वो ऱाज...आज जी रहे है तो

बस अपनी ताकत मे..जहाॅ खुदा दे रहा है आवाज..हमे इन सब से दूर..सिरफ उस की ही

पनाहो मे...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...