Tuesday 28 October 2014

चलना फिर रूकना,रूक कर फिर चल देना..बरसो से यही तो करते आए है...किसी के

लिए जीना, किसी के लिए मरते रहना..सदियो से करते आए है..चुपके चुपके रोना,पर

जमाने के लिए बिॅदास जीना..यह तमाशा तो हमेशा से करते आए है..पयार किसी से

कभी ना ले पाए,फिऱ भी सब के चहेते होने का नाटक..सदियो से करते आए है.जिनदगी

से पयार कभी था ही नही,फिर भी जिनदगी को जीते आए है.....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...