हर रासता खुुद बना रहे है...किसी के सहारे के बिना....ना रजिॅश है ना पयार है...ना
वो तडपने वाली मुहबबत है...अकसर सोचते है कया मिला हमे पयार की बेपनाह दौलत
लुटा कर....ना कदर थी ना कदर होगी...हमारे जजबातो की....फिर किस लिए तडपे...
किस के लिए रोए...आॅसू बहा कर भी कया मिला....आज सकून है इस बात का कि
जिनदगी को जी रहे हैै अपनी शरतो पे....
वो तडपने वाली मुहबबत है...अकसर सोचते है कया मिला हमे पयार की बेपनाह दौलत
लुटा कर....ना कदर थी ना कदर होगी...हमारे जजबातो की....फिर किस लिए तडपे...
किस के लिए रोए...आॅसू बहा कर भी कया मिला....आज सकून है इस बात का कि
जिनदगी को जी रहे हैै अपनी शरतो पे....