Monday 18 August 2014

वो ही धरती वो ही आसमान है..वो ही सूरज वो ही चॅदा..

ना ही राते बदली है..ना बदला है सवेरे का उजाला..

अकसर जीवन की दौड मे..बदल जाती है ऱिशतो की महक..

दौलत शोहरत के लिए..रिशते भी दाॅव पे लगा देतेे है लोग..

इनही को पाने के लिए..रिशते ही गॅवा देते है लोग....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...