हर लमहा कुछ कहता है,तेरे मेरे पयार की दासताँ को गुनगुनाता हैं..
बहारें शिददत से फूल बरसाती हैंं,रोशन जहाँ को करती हैं...
बरसों बाद भी यही बहारें यही लमहें,दासताँ हमारे पयार की दोहराए गी..
तब पयार के पननों मे,यहीं मुहबबत फिर से मुसकुराए गी...
बहारें शिददत से फूल बरसाती हैंं,रोशन जहाँ को करती हैं...
बरसों बाद भी यही बहारें यही लमहें,दासताँ हमारे पयार की दोहराए गी..
तब पयार के पननों मे,यहीं मुहबबत फिर से मुसकुराए गी...