Tuesday 3 June 2014

दो बूँद पानी की पयास ही,हमें उस कुए तक ले आई है.

जहाँ पे बँजऱ है यह जमीं,और ठेरों पतथर खाई है..

वजूद तो सिरफ पयास का है,कुआँ तो नाम की दुहाई है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...