टुकडों मे बँट रही है जिनदगी..सुबह शाम की तरह,कही धूप कही छाँव बन रही है...
जिनदगी..रिशतों का मोल नही रहा यहा,कोई मिट रहा है तो कोई मिटा रहा है....
जिनदगी को यहाँ..बस मायने बदल गए है यहाँ......
जिनदगी..रिशतों का मोल नही रहा यहा,कोई मिट रहा है तो कोई मिटा रहा है....
जिनदगी को यहाँ..बस मायने बदल गए है यहाँ......