हा तेरे बचपन की पयार की झलक आज भी मेरे आँगन में है..
उस मिटटी् मे तेरे चलने की खनक आज भी हैं..
हम औऱ तुम बचपन की उस नादानियों से आज दूर निकल आए है..
पर तेरी मेरी पाक मुहबबत को आज भी नही भूल पाए हैं..
उस मिटटी् मे तेरे चलने की खनक आज भी हैं..
हम औऱ तुम बचपन की उस नादानियों से आज दूर निकल आए है..
पर तेरी मेरी पाक मुहबबत को आज भी नही भूल पाए हैं..