हर दरद दुआ मे अगर बदल गया होता,तो खुदा की इस दुनिया मे कही दरद नही होता.
पर दरद की इनतिहाँ रही इतनी,कि इनसान ही पतथर का बन गया..
चाहने से गर खुशी मिलती,अपनों का पयाऱ मिलता,तो यह जहाँ इतना बुरा ना होता.
पर दरद की इनतिहाँ रही इतनी,कि इनसान ही पतथर का बन गया..
चाहने से गर खुशी मिलती,अपनों का पयाऱ मिलता,तो यह जहाँ इतना बुरा ना होता.